-दबंगई –
कविता …बाहर आओ …देखो आज तेरे राजू ने मेरे बेटे को बहुत मारा है। आवारा बना दिया है उसे तुमने । दिन भर गुंडागर्दी करते हुए घूमता है । बड़बड़ाती हुई सविता दरवाजा पीट रही थी । कविता की नाक में दम कर दिया था बेटे ने । रोज ही शिकायतें उसके पास आती थी और वो उनसे क्षमा मांगती रह जाती थी । कई बार बेटे अनुज को समझाने की कोशिश की पर कोई असर नहीं था । वो अपनी गलती मानता ही नहीं था। कहता था वो गलत का विरोध करता है बस कोई गलत काम नही करता । एक दिन कविता दोपहर में आंगन में धूप सेक रही थी कि घण्टी बजी । उसे लगा फिर कोई शिकायती होगा पर …ये क्या सामने सर पर पट्टी बांधे अनुज था । मोहल्ले वाले उसे पकड़ कर ला रहे थे । गुस्से में कविता उबल पड़ी ।नालायक जीना मुश्किल कर दिया है तूने मेरा । अब क्या कर आया कहते कहते एक चपत जोर से उसके गाल पर दिया । तभी पड़ोसन नीरू उसके पैरों पर गिर पड़ी । बोली …न..बहना मत मार इसे …इसने आज मेरे घर की इज्जत बचा ली..कुछ लोग मेरी बेटी को उठा कर ले जा रहे थे। ये उनसे भिड़ गया …कि मेरे होते हुए कोई इस मोहल्ले की किसी भी लड़की को हाथ भी नही लगा सकता ।बहुत मार पीट हुई पर इसकी दबंगई देख कर वो लोग भाग गए । ये ही पुलिस में भी रिपोर्ट लिखवा कर लाया है । फरिश्ता है तेरा बेटा …फरिश्ता ।कविता की आंखों से अविरल आँसू बह रहे थे ….
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद