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26 Nov 2016 · 1 min read

दफ्न अब हो रहे रिश्ते भी दौलत तले

उसने मुझको जो दिखाई थी वो जन्नत कैसी
हुस्न वालों में वहाँ देखी नज़ाकत कैसी

दफ्न अब हो रहे रिश्ते भी दौलत के तले
सामने आयी है मेरे ये हकीकत कैसी

नदियां मिलती हैं जाकर समन्दर में ही
फिर भला तुमने उठाई है ये ज़हमत कैसी

मिलकर बिछड़ जाते है क्यों अपने हरदम
हमने अपने लिए पाई है ये किस्मत कैसी

काँटों पे चलके बनाई है ये किस्मत अपनी
हाथों में चाहे लकिरों की हो फ़ितरत कैसी

झूट को देते हैं ताक़त वो अंधेरी शब में
दिन के उजालें में फिर ये सदाक़त कैसी

बोलकर सच ही कँवल मोल ये ज़हमत ले ली
मिल गई बैठे बिठाये ये मुसीबत कैसी

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