दफन हो गए अरमान
*** दफन हो गए अरमान ***
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दफन हो गए सारे अरमान,
जब पहुंचे श्रीमान कब्रिस्तान।
छूमंतर हो गई मस्त जवानी,
आ गया बुढ़ापे का फरमान।
फंस गया दुनिया बीच जंजाल,
मुख पर खत्म हो गई मुस्कान।
जितनी भी हो ऊँची दुकान,
उतना फीका होता पकवान।
समझो उसको है कोई काम,
जब हो कोई ज्यादा मेहरबान।
ईज्जत का जैसै हो अकाल,
पहले जैसे न रहे कद्रदान।
सेवाभाव नजर तनिक न आए,
न कोई पूछे आए को जलपान।
छोटे बड़ों का न रहा लिहाज,
पल में पकड़ लेते हैं गरबान।
मनसीरत कहता सच्ची बातें,
पल्लू गाँठ बाँधो सुनो यजमान।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)