#दंडी रचित दशकुमारचरित
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★ #दंडी रचित दशकुमारचरित ★
संस्कृति की वाहक होने के कारण भाषा को संस्कृत कहा गया। कही गई बात को पीछे आने वाले लोग भी जान सकें इसलिए देवों ने लिपि का निर्माण किया जिसे देवनागरी कहा गया।
वे जन, जो किन्हीं शब्दों का मूल खोजने डच, फ्रेंच, ग्रीक अथवा किसी अन्य भाषा की शरण में जाने को आतुर हैं, पहले इस बकवाद का समर्थन करें कि ‘आर्य’ विशेषण नहीं संज्ञा है।
‘दंडी’ रचित संस्कृत का उपन्यास ‘दशकुमारचरित’ एक ऐसी विलक्षणता लिए हुए है कि विश्व की शेष भाषाएं केवल उसका गौरव-गान कर सकती हैं।
‘दशकुमारचरित’ कथा है दस राजकुमारों की जो एक स्थान पर एकत्रित होते हैं, और निश्चित करते हैं कि सभी जन अलग-अलग दिशाओं में जाएंगे और एक निश्चित समय उपरांत पुनः यहीं मिलेंगे और अपने-अपने अनुभव सुनाएंगे।
वो दिन आ जाता है और सभी राजकुमार अपनी-अपनी कहानी कहते हैं।
एक राजकुमार अपनी बात कहने के बीच में एक बार पीड़ा के कारण सिसकारी भरता है तो दूसरे उसका कारण पूछते हैं?
वो कहता है कि “कुछ काल हुआ उसका किसी व्यक्ति से विवाद हो गया। तलवारें खिंच गईं। उसका निचला होंठ कट गया। उस घटना के कारण वो वार्ता के लिए ‘तवर्ग’ के अगले वर्ग के अक्षरों का उच्चारण नहीं करता है। कथा कहते हुए असावधानीवश वर्जित वर्ग के अक्षर का उच्चारण हो गया। होंठ जुड़े तो कष्ट हुआ। इसी कारण ‘सिसकारी’ निकली।”
प्रणाम ! ‘दंडी’ जी को ! !
वो राजकुमार अपनी पूरी कहानी कहते हुए केवल एक बार ‘पवर्ग’ के एक अक्षर का प्रयोग करता है।
मैं भाग्यशाली हूँ कि मेरे जीते जी एक और महान विभूति इस धरा की शोभा बढ़ा रही थी।
माँ शारदा के प्रिय पुत्र ‘रांगेय राघव’ जी ने इस उपन्यास का हिंदी अनुवाद किया है और वही ‘दंडी’ वाला जादू कर दिखाया है।
ऐसे-ऐसे महान लोग हमारे पूर्वज रहे हैं, इतना यथेष्ट नहीं है। हमें उनके पदचिन्हों पर चलना है। किसी को यह बताने की कोई आवश्यकता नहीं है कि मेरा नाम ‘लाईट ऑफ नॉलेज’ अर्थात ‘वेदप्रकाश’ है। मेरे कार्यकलाप से लोग अपने-आप ही जान जाएंगे कि सच क्या है?
इस लेख के पाठक मेरा प्रणाम स्वीकार करें। और भूल-चूक के लिए क्षमादान के मेरे अधिकार की रक्षा करें। क्योंकि मैं भाषा-वैज्ञानिक न होकर मात्र अपढ़ा-अगढ़ा एक कवि हूँ।
ओ३म् हरि ओ३म् !
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२