दंगा पीड़ित कविता
दंगापीड़ित
इनका भी था ,इक सपना ,
कि समाज से ,इन्हे भी प्यार मिले…
पर मिली इन्हे दुश्वारियाँ,
और ईर्ष्या के घाव मिले…
पल रहे हैं शिवरों में
जो देश के भविष्य हैं,
थी उम्मीद जिसे प्रकाश की,
उन्हें बदले में अंधकार मिले…
खुदगर्ज राजनीति के,
मासुम भी शिकार हुऎ…
क्या सोचेंगे ऎ राष्ट्रवाद,
क्या समाजकेलियेजियें,
बसकुंठितनाहोंसमाजसे,
कदमकहीं..जोडग..मगा.गयॆ…