थोड़ा थोड़ा हर शख्श मे पल रहा हूँ मैं …
चिता की आग में जल रहा हूँ मै ,
तेरे मिलने को मचल रहा हूँ मै,
एक रोज़ कभी मिली थी फ़ुलो की सेज़,
जबकि रोज़ काँटों पर चल रहा हूँ मै ,
हर बात तेरी नसीब समझकर मानता रहा,
तेरे लिए कितना बदल रहा हूँ मैं,
ये बेबसी ये कमजोरी हर चेहरे मैं जाहिर हैं,
थोड़ा थोड़ा हर शख्श मे पल रहा हूँ मैं
हर बार पछता कर फ़िर तुझपे यकीन करता हूँ,
कैसे कह दू ठोकरों से संभल रहा हूँ मैं ,
तीज त्यौहार अब नादानी पिछड़ापन लगते हैं,
शहर आके पत्थर में बदल रहा हूँ मैं,
लो आ गया इलेक्शन वादों इरादों का दौर,
जुबाने ज़हर की केचुली बदल रहा मैं ……… !!!