थोडा सा बढ़ जाता है
हर एक दिन घट जाता हैं
तू थोडा सा बढ़ जाता है
सोचता है बड़ा हो रहा हूँ
पर तेरे दिन कम हो रहे है
रोज तैनात अपने काम पर
फिर भी सकून को खोता है
मुँह की हँसी हो गई गायब
बस कर्तव्यों की गठरी ढोता
ऐसे हर एक दिन बढ़ जाता
तू थोडा सा बढ़ जाता है
नित्य कर्म से हो कर निवृत
फिर नव निर्माण को तैयार
खूब खटता है दिन भर जब
करे तब सपने को साकार
ऐसे ही प्रति पल बढ़ जाता
तू थोडा सा बढ़ जाता है