थोड़ी सी कृतज्ञता
फटा था पुराना था
लेकिन जाना पहचाना था
रास्ते में पड़ा था जो जूता
उसका कुछ तो अफसाना था।।
पहनता था उसको भी
कोई कभी बड़े चाव से
आज बेचारा दिख रहा
बेहाल,अनगिनत घाव से।।
कभी मंजिल की राह बनाई थी
उसने भी किसी की आसान
शिखर पर पहुंचे है जो आज
भले ही हो गए अब वो अनजान।।
ठीक यही काम करते है
हमारी ज़िंदगी में कुछ इंसान
जैसे इन पुराने जूतों ने
दे दिया किसी के लिए बलिदान।।
पथरीली राहों पर पैरों
को उसी जूते ने बचाया था
गिरे थे जब राहों में तो
हमें भी किसी ने उठाया था।।
राह चलते हमें कांटों से
इन जूतों ने कई बार बचाया था
ज़िंदगी में आए कांटों से
हमको भी किसी ने बचाया था।।
राहों में पत्थर हो या कांटे
सब इन जूतों ने सह लिए
जब पुराने हो गए वो जूते
तो हमने रास्ते में फेंक दिए।।
ये तो जूते हैं कोई बात नहीं
ये कोई शिकायत करेंगे नहीं
क्या होगा जब इंसान के साथ भी
ऐसा करने से हम डरेंगे नहीं।।