“थोड़ा -सा एक दिन में”
कुछ अनन्त सी बातों का सिलसिला,
जो शुरू हुआ कविताओं में,
रख देती हूँ ,थोड़ा -सा एक दिन में |
नरम -नरम से कुछ शब्दों में ,
भावों से उपजे कुछ कोमल कुछ गरम- गरम,
कुछ शुष्क ,कुछ नम से,
कु़छ अपनों की तो कुछ गैरों की,
कुछ अनन्त सी बातों का सिलसिला ,
जो शुरू हुआ कविताओं में,
रख देती हूँ फिर थोड़ा -सा एक दिन में|
गीले -गीले से कुछ शब्दों में,
सपनों से उपजे कुछ झीनें कुछ हल्के -हल्के,
कुछ सोंधे ,कुछ फीके से,
कुछ मेरे तो कुछ तुम्हारे ,
कुछ अनन्त सी बातों का सिलसिला ,
जो शुरू हुआ कविताओं में,
रख देती हूँ आज फिर थोड़ा -सा एक दिन में|
…निधि…