थोड़ा बहुत नही सारा टूटता है
थोड़ा बहुत नही सारा टूटता है
नदियों की पीर से किनारा टूटता है
जो-जो झूठ न बोल पाए चुप रहे
सच बोलने से भाईचारा टूटता है
कतार में खड़े हैं दुआएं मांगने को
खबर है आज की रात तारा टूटता है
तुम क्यों परेशॉ हो इस खामोशी से
हादसों से यकीन तो हमारा टूटता है
कच्च मकान और मुहब्बत में यकी
तनहा बरसात में सारा टूटता है