*थोड़ा-थोड़ा दाग लगा है, सब की चुनरी में (हिंदी गजल)
थोड़ा-थोड़ा दाग लगा है, सब की चुनरी में (हिंदी गजल)
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थोड़ा-थोड़ा दाग लगा है, सब की चुनरी में
ढूॅंढ़ो उसको जल हो पूरा, जिसकी गगरी में
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तनिक अधूरापन-सा ही है, सबके जीवन में
कुछ उजाड़-सा कोना है हर, बस्ती-नगरी में
3
कलाकार ने जिसे तराशा, पूजित वह कृति है
छिपे हुए शंकर हैं यों हर, पत्थर-पथरी में
4
उसी एक को हर प्राणी के, भीतर पाया है
शेर-आदमी-चिड़िया-मछली, या फिर बकरी में
5
अभी-अभी निकला है सूरज, नव-प्रभात छाया
करो शाम की बातें आकर, किसी दुपहरी में
6
ठकुर-सुहाती कहने वाली, आदत को छोड़ो
दॉंत गड़ा कर खाना अच्छा, लगता सफरी में
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सफरी = अमरूद
(रामपुर में अमरूद को हमारे बचपन में सफरी ही बोला जाता था। अमरूद तो हमने बहुत बाद में बोलना शुरू किया।)
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451