थोड़ा ठहर ऐ ज़िन्दगी
थोड़ा ठहर ऐ ज़िन्दगी
कर लूँ ज़रा सी बन्दगी
चुपके से तुझको देखना
नज़रों में है शर्मिन्दगी
मुझको मिटा के चल दिये
अच्छी नहीं ये दरिन्दगी
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महावीर उत्तरांचली