थे अंधेरा, अब रोशन समां बन गए
थे अंधेरा, अब रोशन समां बन गए,
धूल थे पहले हम, आसमां बन गए।
गुरुवर का उपकार मुझ पर हुआ,
उनके चरणों में हम क्या से क्या बन गए।।
हम तो अज्ञान में डूबे दस्तूर थे,
खुद में खुद से ही खुद इतने मजबूर थे।
हम तो ज़ाहिल थे, जड़ भी थे बेनूर थे,
नूर ऐसा मिला कहकशां बन गए ।।
मेरे हर ज्ञान का जो भी आकार है,
इसमें उनका ही, उनका ही उपकार है।
करूँ वंदना मैं,? गुरु की सदा,
जो हमको इंसां बना के खुदा बन गए।।