थूक
बहुत दिन पहले हमारे अटल बिहारी वाजपई साहब ने कहा था, कि भारतीय लोग किसी भी जगह पर “थूक” देते हैं.. उन्होने बिलकुल सही कहा था…और उनकी इसी “थूक” पर में यह कविता लिख रहा हूँ.
** थूक **
न जाने तू कहाँ से चली आती है
आते आते मुख को गन्दा कर जाती है
रोकने से भी न रूकती है तू
बस हो या कार पिक से निकल जाती है !!
कोई घर से साफ़ सुथरा निकल के आया
तू उस पर बे खौफ भाग पड जाती है
क्या तुझ को नहीं लगता ऐसा कर के
तू लोगो को लोगो से ही लडवाती है!!
क्या बिगाड़ा है तेरा दीवारों ने तू झट
पट उन के रंग खराब कर जाती है
इस महंगाई के दौर में तुझे पता है
कई साल में रंग रौगन की जाती है !!
दफ्तर हो या सडक तुझे न आती लज्जा है
बस तुझ को अपना अपना दिखाई देता है
किस पर क्या गुजरती है,यह वो जाने
तुझे अपनी करनी पर नहीं आती लज्जा है !!
अब तो तेरा स्टायल बदल गया है,
तूं आती सुन्दरता को साथ लेकर
पान हो या गुटखा तेरे नए नए दोस्त बने है
उन यारों को भाति तेरी बहुत शान है !!
तुझ को भाते हैं यह सब, क्यों कि तू फ्री है
तेरा न होता कोई खर्चा ,क्यों कि तू फ्री हे
“अजीत” ड्राइक्लीन के पैसे इतने महंगे हैं
एक “थूक”का दाग मिटने में जिदगी गुजर जाती है !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ