*थियोसॉफिकल सोसायटी से मेरा संपर्क*
थियोसॉफिकल सोसायटी से मेरा संपर्क
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थियोसॉफिकल सोसायटी से मेरा संपर्क 2007 से निरंतर चल रहा है। माध्यम श्री हरिओम अग्रवाल जी हैं , जो अनेक दशकों से रामपुर(उ.प्र.) में थियोसोफिकल सोसायटी का संचालन कर रहे हैं। इसी क्रम में सोसायटी के अनेक कार्यक्रमों में मैं जाता आता रहता हूँ तथा थियोसॉफिकल साहित्य बड़ी मात्रा में हरिओम जी के माध्यम से मुझे पढ़ने के लिए उपलब्ध हुआ। धर्म पथ तथा अध्यात्म ज्योति दो ऐसी ही नियमित पत्रिकाएँ हैं , जो मुझे श्री हरिओम जी के माध्यम से ही उपलब्ध हो रही हैं ।
पढ़ते-पढ़ते बीच में दो पुस्तकें भी मैंने थिओसोफी की कार्य पद्धति तथा पुस्तकों के बारे में लिखी हैं। 2012 में भारत समाज पूजाः हिंदी पद्यमय प्रस्तुति 24 पृष्ठ की एक पुस्तक प्रकाशित की। इसमें थियोसॉफिकल सोसायटी के अंतर्गत कराई जाने वाली भारत समाज पूजा का हिंदी पद्यमय स्वरूप प्रस्तुत करने का प्रयत्न किया गया है। आशय यह है कि संस्कृत के मंत्रों को अगर हिंदी पद्य में प्रस्तुत किया जाए तो कैसा रहेगा। यद्यपि प्रकाशन के बाद भी अभी तक प्रयोगात्मक रूप से इसकी प्रस्तुति नहीं हो पाई है । भारत समाज पूजा पुस्तक के अंतर्गत ही एक समीक्षा अदृश्य सहायक पुस्तक की है जिसके लेखक सीडब्ल्यू लेडबीटर हैं। इसमें संसार की महान आत्माओं के द्वारा इस पृथ्वी पर लोगों की सहायता करने तथा इस संसार को और भी अधिक सुंदर बनाने के लिए आत्मा के माध्यम से किए जाने वाले प्रयासों का विवरण है । एक दूसरी पुस्तक कुमारी क्लारा कॉड द्वारा लिखित है जिसका अनुवाद ध्यान अभ्यास और परिणाम के नाम से श्री रामचंद्र शुक्ल द्वारा किया गया है। यह 1954 का प्रकाशन है ।
2013 में सत्य की खोज नामक 20 प्रष्ठ की पुस्तक मैंने प्रकाशित की । इसमें मैडम ब्लेवैट्स्की की पुस्तक वॉइस ऑफ साइलेंस की समीक्षा है। एनी बेसेंट ःएक भारतीय आत्मा नाम से जीवनी है। थियोसॉफिकल सोसायटी के संबंध में दो लेख हैं । थिओसोफी के असाधारण व्यक्तित्व जे. कृष्णमूर्ति की किशोरावस्था में लिखित कृति श्री गुरुदेव चरणेषु की समीक्षा है । एक गीत है ः खोज सत्य की करो, सत्य से बढ़कर धर्म ना पाया तथा इसके साथ ही थियोसोफी की अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष रही श्रीमती एनी बेसेंट की काव्यमय जीवनी दो प्रष्ठों में लिखित है । एक पत्र डॉक्टर(कुमारी)सुचेत गोइंदी का भी इसमें छापा गया है , जिसमें उन्होंने प्रोफेसर मुकुट बिहारी लाल के बारे में मेरी पुस्तक का उत्तर दिया था । इस प्रकार थियोसोफी को जहाँ मैं एक ओर समझने का प्रयत्न कर रहा हूँ, वहीं दूसरी ओर जितना- जितना समझता जा रहा हूँ , उसे दूसरों तक पहुँचाने का भी प्रयास है ।
थिओसोफी एक स्वतंत्र विचारों पर आधारित संस्था है ,जिसके तीन उद्देश्य हैं। पहला सब प्रकार के भेदभाव से रहित मानवता की उपासना,दूसरा धर्म दर्शन और विज्ञान के तुलनात्मक अध्ययन पर जोर देना तथा तीसरा प्रकृति के अज्ञात नियमों और मानव में अंतर्निहित शक्तियों का अनुसंधान करना है।
तीन महान सत्य सोसाइटी में प्रतिपादित किए हैं । जिनमें एक मनुष्य की आत्मा के असीमित विकास के संबंध में है ।दूसरा यह कि मनुष्य अपना भाग्य विधाता है ,और तीसरा यह कि एक जीवनदायी तत्व होता है जो हमारे भीतर- बाहर सब जगह है ,अविनाशी है। इसे देखा, सुना या सूँघा नहीं जा सकता लेकिन फिर भी जो इसके अनुभव की इच्छा करता है ,उसके लिए यह अनुभवगम्य है। मेरी दिलचस्पी इसी जीवनदायी तत्व को जानने में रही । इसी को समझने के लिए मैंने कठोपनिषद पढ़ा और पढ़कर उसका हिंदी में काव्यानुवाद भी किया । सामवेद तथा अथर्ववेद पढ़ने के बाद पुस्तक रूप में काव्यमय प्रस्तुतियाँ दीं और संभवतः इसीलिए शायद 2018 के अंत में हरिओम जी ने जब मुझसे कहा कि मैं इसोटेरिक सोसाइटी ऑफ थियोसॉफी का आपको सदस्य बनाना चाहता हूँ, तो मुझे हार्दिक प्रसन्नता हुई ।इसकी सदस्यता का बड़ा महत्व इसलिए है क्योंकि इसके माध्यम से हम उन महात्माओं से जुड़ सकते हैं, जिन्होंने मैडम व्लेवेट्सकी को थियोसॉफिकल सोसायटी स्थापित करने की प्रेरणा दी थी ,. सीक्रेट डॉक्टरीन नामक पुस्तक पूर्ण करने के लिए प्रेरित किया था। यह महात्मा सदैव युवा रहने वाले व्यक्ति हैं। इनके विषय में मैडम ब्लेवैट्स्की ने एक स्थान पर लिखा है कि जब मैं युवा थी ,तब भी यह महात्मा युवा थे और अब जब मैं बूढ़ी हो गई हूँ, तब भी यह महात्मा युवा ही दिखाई देते हैं । यह महात्मा संभवतः वेद में वर्णित उस सिद्धांत के अनुसार जीवन व्यतीत करने वाले महात्मा हैं जिनकी 300 वर्ष की आयु के बारे में वेद में बताया गया है। जिनके बारे में वह कहता है कि मनुष्य की आयु 100 वर्षों से बढ़कर 300 वर्ष तक हो सकती है।
बाकी सब बातें तो इसोटेरिक सोसाइटी के संबंध में ठीक थीं, इसमें शराब और माँस के सेवन पर रोक लगाने जैसी शर्ते भी थी जो पश्चिमी देशों में भले ही कठिन जान पड़ती हों, लेकिन भारत में अग्रवाल समाज में तो माँस और मदिरा का सेवन हजारों वर्षों से प्रतिबंधित रहा है। मुख्य समस्या यह आई कि हरिओम जी का कहना था कि एक बार इसोटेरिक सोसाइटी की पूजा में बैठने के बाद फिर आपको नियमित रूप से आना ही पड़ेगा। जबकि मेरा कहना यह था कि मैं हमेशा के लिए यह वायदा नहीं कर सकता। फिलहाल घर पर ही नियमित ध्यान साधना चल रही है । महात्माओं से संपर्क देखिए होता है कि नहीं होता है या कब होता है ?
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(लेखन तिथि : 31जनवरी 2020)
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लेखक: रवि प्रकाश,
बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451