थाम भी लो अब बाहों में
थाम भी लो अब बाहों में
******************
कब से खड़े हैं राहों में
थाम भी लो अब बाहों में
बेशक अन्जाने राही हैं
ढ़ूंढ़ लो हमें फिज़ाओं में
नाम तुम्हारा लबों पर हैं
सुनो तुम हमें सदाओं में
जरा सा हमें तुम देख लो
खड़े हैं लम्बी कतारों में
मौसम बड़ा हसीं है यहाँ
छाये हो तुम बहारों में
देखूँ जहाँ तुम्ही है मिलो
दिखते मुझे दिशाओं में
सांसो में तुम बस गए हो
बहते हो तुम हवाओं में
ढूंढू तुम्हे मैं यहाँ वहाँ
बसते हो तुम निगाहों में
अंग अंग में समाये हो
रहते हो तुम्ही ख्यालों में
दिन रात अब बेचैन रहूँ
आने लगे हो ख्वाबों में
मनसीरत मेरी हमनशीं
बंद, दिल की मीनारों में
******************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)