थर्टी परसेंट सच्चाई लिए हिंदी फिल्म ‘सुपर थर्टी’ !
रविवार… इवनिंग शो… मोना सिनेमा हॉल ! आनंद (‘सुपर थर्टी’ के गणित शिक्षक) और सदानंद (मैं) पटना के मुसल्लहपुर की गलियों में लगभग एक साथ आईएएस बनने की तैयारी के साथ-साथ आजीविकोपार्जन हेतु भी सोचते जाते थे ! उनके पिताजी डाककर्मी और मेरे भी ! दोनों के पिता डाक -कर्म से वेतन बहुत सीमित पाते थे । मगहीभाषी वे पटना सीमांत देहात के रहनेवाले थे, तो बच्चों के भविष्यार्थ उनके डाककर्मी पिताजी शहरी क्षेत्र में आकर भी बसे ! वे यानी आनंद कुमार मुसल्लहपुर के किसान कोल्ड स्टोरेज गली, लुहार गली, स्वीट हर्ट लेन, नहर पर, बाज़ार समिति, गाँधी चौक जानेवाली गली, फिर महेन्द्रू पोस्ट ऑफिस जानेवाली गलियों के किन -किन घरों में गणित का ट्यूशन पढ़ाया करते थे, आज वे इस संघर्ष को छोड़ चुके हैं ! इसी गलियों में किसी एक गली में मैं एक दिन इनसे टकरा गया ! तब वे भी गणित में संख्या व अँगुलियों पर आकलन करते सूत्र -फुत्र खोजा करते और एक छोटा -सा कैलकुलेटर रखते थे, जिसे वे गरीबों का कंप्यूटर कहा करते थे ! खुद को गणितज्ञ कह खुद पीठ थपथपा लेते थे (जब कोई प्रशंसा नहीं करे, तब कोई क्या करें?) ! मेरी भी तब ‘सदानंद पॉल की गणित -डायरी’ प्रकाशित हो चुकी थी।
मैं और आनंद हमउम्र हैं ! शायद वे 1989 या … में मैट्रिक किए हैं ! उनके कैंब्रिज में पढ़ने का ‘मिथ’ यह है कि तब (शायद अब भी) वहाँ एडमिशन गणितीय -सूत्रों के विदेशी जर्नल्स में प्रकाशन के आधार पर कुछ कोटे में रिक्तियाँ के विन्यस्त: होते थे ! यह कोई ‘एब्सोल्यूट ज़ीरो’ अथवा ‘हॉरर’ वाली कोई नई बात नहीं है !
नब्बे के दशक में उनके पिताजी राजेन्द्र बाबू के निधन से पहले भी, अर्थात उनके जीवित रहते भी आनंद कुमार के परिवार ‘पापड़’ रोजगार से जुड़ चुके थे ! आर्थिक दिक्कतों के कारण ही वह ट्यूशन पढ़ाया करते थे, ट्यूशन को कोचिंग में परिणत करने के सोद्देश्य बी एम दस रोड किनारे, जो कि अशोक राजपथ से आकर मिलती है, एक कोचिंग संस्थान खोला ! एक साल बाद ही नामकरण हुआ- ‘रामानुजन स्कूल ऑफ मैथमेटिक्स’ ! कालांतर में यह कुम्हरार चला गया, वहीं अजिताभ कौशल सर से मेरी मुलाकात हुई थी, जो कि आनंद कुमार के गणितीय -आलेखों के मैथेमैटिक्स जर्नल में प्रकाशनार्थ ‘मार्गदर्शक’ थे !
पहले आनंद कुमार घर पर ही ट्यूशन करते थे, संघर्ष के दौरान अगर मैं उनका घर गया होगा, तो दीगर बात है ! बी एन कॉलेज में एडमिशन व वहाँ पढ़ने के कारण उनका साबका पटना के ‘मुखर्जीनगर’ के संज्ञार्थ व पर्यार्थ महेन्द्रू -मुसल्लहपुर -बी एम दास रोड से हुआ । मैं उसे बतौर ट्यूटर व एक जोड़ी टेबल -कुर्सी लगाए खुद के संस्थान में एडमिशन हेतु सिंपल विज्ञापक व छोटा -मोटा डायरेक्टर के रूप में रोज देखता, जो कि चाय तक पिला नहीं पाते थे और पेपर तक खरीद नहीं पाते थे ! बाद में इसी सेंटर से उनके छोटे भाई प्रणव कथित ‘डायरेक्टर’ हुए !
सनद रहे, अखबारों के स्थानीय संवाददाताओं से उनकी जमती अच्छी थी । तिलक सर से भी उनकी छनती थी । गणितज्ञ अजिताभ कौशल उनकी सूत्रों पर टीका -टिप्पणी किया करते थे । शायद इसी समय पटना में ‘तथागत अवतार तुलसी’ का उभार हुआ था । हमदोनों के गणितीय सूत्र इस उभार में दब जाते थे ! तथागत ने ‘पाई’ का विशुद्ध मान खोजने का दावा किया था, इसतरह के समाचार अखबारों व प्रतियोगिता किरण आदि पत्रिकाओं में छप चुकी थी, उस समय तथागत ही ‘कौटिल्य पंडित’ था ! कालांतर में, फिजिक्स ही तथागत का विषय रहा और वे गणित विधा से दूर होते चले गए, किंतु इस ‘वन्डर ब्वॉय’ से एक दिन हम दोनों मुलाकात किये, जो कि अकेले में नहीं रहा, क्योंकि अकेले में मैं उनसे कुछ प्रश्न पूछना चाहता था, परंतु उनके पिताजी तुलसी नारायण प्रसाद जी ने ऐसा होने नहीं दिया, कुछ पूछते तो तथागत के पिताजी ही टोक देते थे और तब मुझे तथागत जटिल नहीं लगा था !
एक दिन की बात है, आनंद कुमार ने मेरी एक गणितीय -सूत्र को, जिसे मैंने उसे दिखाया था, में कुछ अपना लेबल लगाकर प्रकाशनार्थ भेज दिया , जब इनका समाचार छपा, तब मैंने अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी से इसपर विरोध जताते हुए व चोरी हुए मेरे सूत्र को लेकर रजिस्ट्री डाक से शिकायत दर्ज किया था और अखबारों को भी इसकी सूचना दिया था, किंतु इसपर अख़बारनवीसों की उदासीनता देखने लायक थी । इन कारणों से तथा तब मैंने कापरेकर नियतांक – 6174 को चुनौती देकर विशिष्ट संख्या ‘2178’ की खोज कर डाली थी और फिर 1998 में कंप्यूटर की वाई2के समस्या पर मेरे द्वारा समाधान को लेकर ईर्ष्यत्व भाव लिए आनंद कुमार मुझसे अलग हो गए ! गणित -सम्बन्धी मेरे कई लेख ‘विज्ञान प्रगति’ में भी छपे हैं । उन दिनों हमदोनों गणित -लेखक गुणाकर मुले से ज्यादा ही आकृष्ट थे ! मुले जी की ‘गणित की पहेलियाँ’ उन्हें पसंद थी । इस बीच गुणाकर जी ने सिर्फ मुझे ‘हिंदी भाषा में गणित का पहला अन्वेषक’ कहा था, जिनमें आनंद का फ़ीडबैक मेरे प्रति अच्छा नहीं था यानी ढोढाई लोग भी ‘गणितज्ञ’ बन जाते है ! जबकि मैं कालांतर में गणित -शोध को लेकर अखिल भारतीय विज्ञान सम्मेलन – फरवरी 2004 हेतु एनपीएल सभागार, नई दिल्ली में भी भाग लेकर शोध -पत्र प्रस्तुत किया था ।
वैसे ‘सुपर 30’ के अवधारक सिर्फ़ ‘आनंद’ नहीं है ! मेरा ख्याल है, वे तो बिल्कुल नहीं है, क्योंकि जब आनंद के कोचिंग में ‘अभयानंद’ (बाद में बिहार के डीजीपी व इनके पिता भी डीजीपी रहे!) शौकिया तौर पर फिजिक्स पढ़ाने लगे, तो इस ट्यूशनों से अर्जित आय में से प्रतिवर्ष 30 गरीब बच्चों को आईआईटी तक पहुँचाने के सोद्देश्य अभयानंद सर ने सुपर 30 के कांसेप्ट को धरातल पर उतारे, जो कालांतर में अभयदान बन चल निकला, जिनमें अभयानंद सर की आय से भी राशि लगती थी, उनकी संतान भी तो आईआईटीयन है ! बाद में अभयानंद को हाशिये में कर आनंद ‘सुपर कॉर्प्स’ हो गए ! पटना में यही सच्चाई तरंगायित रही । इनसे अलग होकर भी अभयानंद एक अलग सुपर 30 के साथ रहे । जहाँ तक आनंद के सुपर 30 की बात है, प्रतिवर्ष कितने छात्र व छात्राओं ने आईआईटी एंट्रेन्स निकाले, इनकी सटीक सूचना अबतक किसी को नहीं है, सिवाय ‘आनंद & कंपनी’ के ! इस कोचिंग की गुत्थी अब भी अनसुलझी है। जरूरी था, पारदर्शिता के लिए सुपर 30 के छात्र व छात्राओं की नामांकित -सूची को नामांकन समय ही दिखाये जाते !
22 मार्च 2012 को दैनिक हिंदुस्तान की ओर पटना के मौर्यलोक होटल में ‘बिहार शताब्दी समारोह’ था, जिनमें मुझे आरटीआई द्वारा बिहार की शिक्षा व कोचिंग पद्धति में सुधार को लेकर ‘बिहार शताब्दी नायक’ का सम्मान मुख्यमंत्री नीतीश सर के कर -कमलों के प्रसंगश: प्राप्त हुआ । सम्पूर्ण बिहार से 100 व्यक्तित्व में आरटीआई क्षेत्र से एकमात्र मैं ही था । इस समारोह में दैनिक हिंदुस्तान की ओर से आनंद कुमार भी बतौर ‘अतिथि’ आमंत्रित थे और उस तिथि को आनंद से मेरी स्नेहिल बातचीत भी हुई थी ।
…. और गत शुक्रवार (12.07.2019) की शाम को ‘मोना’ कैंपस में आनंद को सिर्फ़ एक झलक देख पाया था ! भीड़, अगले दिन की परीक्षा की बेचैनी के कारण होटल पहुँचने की मेरी शीघ्रता और सुरक्षा -चौबंद के कारणश: उनसे मुलाकात अनिच्छित ही रहा !
फ़िल्म में सुपर 30 की भाँति 30% ही सच के करीब है, शेष 70% फंतासी है । वैसे मैं आपबीती के विन्यस्त: ऐसा कह रहा हूँ, किंतु दर्शकों की मर्ज़ी, वे आनंद कुमार को लीजेंड मानते हैं, तो मैं उनकी तरह ईर्ष्या नहीं, अपितु प्रतिस्पर्द्धा करूँगा ! क्योंकि फ़िल्म में एकाध सूत्र व प्रसंग मेरे भी संस्मरित व दृश्यित हैं ! तो फ़िल्म में ‘प्रेम’ की अन्तर्निहितता को पूर्ण विराम लगा दी गई है !
अखबारों से आनंद की बीमारी का पता चला ! सच में मेरा दिल रो पड़ा। उनके शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूँ । साथ ही पूरी दुनिया में अपनी कहानी फ़िल्म के माध्यम से बताने के लिए (जैसी वे चाहते थे) उन्हें, उनके परिवार व उनके छात्र -छात्राओं तथा सिनेमाई टीम को अनेकानेक बधाई और शुभकामनाएं ! विशेषत:, माँ -द्वय को सादर प्रणाम व उनकी समर्पण को सलाम । काश ! दुबले -पतले हृतिक रोशन के बदले ‘थुलमुल’ आनंद ही ‘रोल प्ले’ करता, तो ख़ासकर मगही टोन में फ़िल्म और भी ‘बुझ हेलथिन हो’ जाता!