थक गया हूं
तुझ पर लिख कर थक गया हूं।
सनम सच कहुंगा थम गया हूं।
तुझसे मिलने की कोशिश करूं कैसे।
कदम तेरे घर की दहलीज पर ठिठक गया हूं।
रूबरू होकर तुझ पर मिट गया हूँ।
वक्त की उलझन में कहीं थक गया हूं।
कहीं मिल जाओ अजनबी में कोशिश करूं कैसें।
कदम तेरे घर की दहलीज पर ठिठक गया हूं।
यह रास्ता कहीं दूर पर मिट गया हूं।
मैं अपने हौसलों से कहीं थम गया हूँ।
अजनबी मेरे लफ्जों पर अपनी उंगलियां फेर दो।
कदम तेरे घर की दहलीज पर ठिठक गया हूं।
अवधेश कुमार राय “अवध”
धनबाद