थका थका दिन
अकेलेपन से व्यथित मन कोई साथी ढूँढ रहा है।पर जब उसे अपने आप से बात करने की फ़ुर्सत नहीं तो कोई दूसरा क्यों करे:-
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“थके थके दिन”
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थके थके दिन
अलसाई सी रातें
दिन में बस परछाईं है
रात में तन्हाई है
मन में उधेड़बुन है
कहाँ समय है?
नहीं कर पाता
अब तो अपने आप से बातें
थके थके दिन—–
सबका अपना अपना जीवन
जैसे घना बीहड़ वन
उस जंगल में भटक रहे अब
किसके पास कहाँ फ़ुर्सत है
कौन करे अब किससे बातें
थके थके दिन
अलसाई सी रातें
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राजेश”ललित”शर्मा
२२-६-२०१७