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24 Jun 2021 · 1 min read

तड़पन

मुलाकातें जब से बंद हुयी
सगे संबंधी भी अनजान हुए
यारी दोस्ती भी धरी रह गयी
लगता है अब तो रमजान हुए

रोज़ जिनसे मुलाकातें होती थी
एक बार नही सुबह शाम होती थी
पल पल हर।पल तरसते हैं अब
महीनों बीत गए उनसे मुलाकात हुए।1।

यारी दोस्ती भी धरी रह गयी
लगता है अब तो रमजान हुए

जान थे जो हमारी, ना मिलना, मजबूरी हो गयी
रोज़ गले मिलते थे जिनसे, जिंदगी ही दूरी हो गयी
पास ना आना बातें ना करना
यूँ छुप छुप कर मिलना ना आसान रहे।2।

यारी दोस्ती भी धरी रह गयी
लगता है अब तो रमजान हुए

रोज़ सुबह उठ कर नहाना धोना
तैयार होकर कार्यालय को जाना
काम की चिक चिक बॉस की किट किट
महीनों बीत गए, इस तरह परेशान हुए।3।

यारी दोस्ती भी धरी रह गयी
लगता है अब तो रमजान हुए

आओ चलो फिर एक कॉल तो कर लें
सुनना सुनाना कहना कहलाना ही कर लें
मिलना जुलना मुलाकातें तो फना हो गई
गली मोहल्ले अब तो पार्क भी वीरान हुए।4।

यारी दोस्ती भी धरी रह गयी
लगता है अब तो रमजान हुए

वीर कुमार जैन
12 मई 2020 उत्पत्ति दिनांक
24 जून 2021

Language: Hindi
1 Like · 366 Views
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