तड़पता है वही यौवन जिसे दरपन नहीं मिलता
पड़े हैं खेत भी सूखे जिन्हें सावन नहीं मिलता
तड़पता है वही यौवन जिसे दरपन नहीं मिलता
अजब है हाल दुनिया का अजब ही बात हैं सारी
किसी को दिल नहीं मिलता किसी को धन नहीं मिलता
मकां सीमेंट के ही शह्’र में हर ओर दिखते हैं
घनी है भीड़ लोगों की कहीं मधुबन नहीं मिलता
क़दम बचपन से सीधे ही बुढ़ापे में ही रक्खा है
यहाँ का आब है ऐसा जवाँ पर्सन नहीं मिलता
यहाँ पर गुल नहीं खिलते यहाँ ख़ारों का शासन है
बबूलों का है ये जंगल यहां चंदन नहीं मिलता
नहीं चलती कभी मर्ज़ी जहाँ सारा भी मिल जाये
जिसे चाहा है इस दिल ने वही साजन नहीं मिलता
सभी ‘आनन्द’ हैं साथी दिनों पल कुछ महीनों के
रहे क़ायम हमेशा जो वही बन्धन नहीं मिलता
– डॉ आनन्द किशोर