((((तख़्ती))))
सोये है आज भी पर आँखे बंद नही कर पाये,
खत्म हो चली ज़िन्दगी खुद को तलाश कर नही पाये.
गुमशुदा हो चला खुद का नसीब,हौंसले बहुत थे
मंज़िल फतेह कर नही पाये.
अधूरी रह गयी हर बात,लिखा बहुत था
सब पढकर भी कभी कुछ पढ़ नही पाये.
दर्द की तख़्ती लटकी थी खुद के नाम पर,
वो बेवफा थी क़बूल कर नही पाये.
दिल बार बार सावधान करता रहा, घमंड था
आँखों से गर्द कभी दूर कर नही पाये.
था बचपना दिल में,वो खेलते रहे हम भी साथ खेलते रहे,
पर खेल क्या है ये समझ नही पाये.
सबको अपना समझना आदत थी,अपना अपना करते रहे
किसी के हो नही पाये।