त्वमेव जयते
लेखक डॉ अरूण कुमार शास्त्री
विषय धर्म रक्षक
शीर्षक त्वमेव जयते
विधा स्वच्छंद कविता
हे धर्म रक्षक आपकी जय हो।
आप हो इस धरा पर तभी तो धर्म है।
सम्पूर्ण ब्रह्मांड का सुनियोजन नियम के अनुसार ही होता है।
मात्र ऐच्छिक विषयों को यदि छोड़ दें ।
इन का मार्ग निर्देशन एक धर्म रक्षक के द्वारा ही सुनिश्चित ।
सृष्टि में इस धरा पर दो ही प्रकार के तत्व होते हैं, एक सजीव और दूसरा निर्जीव
विशेष परिस्थिति में ही निर्जीव अपने नियम भंग करते हैं।
इसके विपरीत सजीव किसी भी परिस्थिति में नियम तोड़ सकते।
हे धर्म रक्षक आपकी जय हो।
आप हो इस धरा पर तभी तो धर्म है।
धर्म को परिभाषित करते ही प्रश्न चिन्ह लगेगा क्यों कैसे कब ?
लेकिन धर्म को परिभाषित करने वालों को इसकी कोई परवाह नहीं।
न्याय व्यवस्था अर्थात धर्म का सम्मान करते हुए इसके विधि सम्मत जीवन यापन ।
इसके परे यदि कोई व्यवस्था होगी तो वो मिथ्या मात्र होगी।
हे धर्म रक्षक आपकी जय हो।
आप हो इस धरा पर तभी तो धर्म है।
धर्म की गति , लय, व दृष्टि वक्री हो ही नहीं सकती ।
और अधर्म की गति, लय और और दृष्टि कभी सीधी नहीं होती ।
धर्म सनातन है चिर है व्यवस्थित है सिद्ध और सैद्धांतिक व सुनिश्चित भी है।
इसीलिए धर्म को सम्पूर्ण जगत के अधिकारों को रक्षा का कार्यभार सौंपा है।