त्र्यंबकेश्वर
जय-जय हे त्रिभुवन बागेश्वर
तव चरणौ प्रणमाम्यहम्।।
त्वमसि शरण्या त्रिभुवन धन्या।
सुरमुनि वंदित चरणा ।।
नव विषधारी हे त्रिपुरारी।
शरणं ते गच्छाम्यहम् ।।
नाद-ब्रह्म मय हे बागेश्वर।
तव चरणौ प्रणमाम्यहम्।।
वर्ण निर्मिता कविता मुखरा-
स्मित रूचि रुचिराभरणा।
जय-जय हे बागेश्वर…
मोक्ष दायकं तव पद कमले।
अई कुंठा विषधारण्
जय-जय हे बागेश्वर..