त्राहि नाद
विश्व देखता रहा अचम्भा,
कैसा हाहाकार मचा है!
त्राहित्राहि सब ओर नाद है,
मृत्यु का सन्धान रचा है।
कौन ?कहाँ? किस देश का वासी?
जन जन अणु विष उगल रहा है।
कातर दृष्टि देख, हृदय का
कण-कण जल बन उमड़ रहा है।
‘नहीं, नहीं,रे! नहीं बचा
सकते तुमको अब सबल धीर!’
वो हाहाकार, सरहद के पार,
लो कान धरो सुन लो अधीर!
सब देश त्रस्त इस दलदल से,
मारे जा रहे छल-बल-कल से।
दुनियावालों अब जूट पड़ो,
कोरोना पर अब टूट पड़ो।
रहो दूर किसी को छूने से,
हाथों को अच्छे से धो लो।
मगर साथ ही आसन और
प्राणायाम की महिमा मत भूलना,
कुछ भी हो ऐ ग्लोब!हमारा
इतिहास कभी भी मत भूलना।
वही, सिकंदर, विश्वविजेता
की तलवार यहाँ टूटी थी।
राणा के चरणों में अकबर
की भी पगड़ी झुकी थी।
यह महामारी भी विश्वविजेता-
सी चमक दमक कर आयी है।
बारह हजार लोगों को अब तक
उदर में भर कर लायी है।
पर याद रहे, इस धरती पर
कितने आये और चले गये।
भारत पाने का स्वप्न लिए
बस हाथ पसारे चले गये।
आ ही गये हो,कोरोना!
तो पानी तुझे पिला देंगे।
भारतवासी मिलकर अब
तेरी नानी याद करा देंगे।