त्रासदी का मंज़र
दिखा आंध्र में इक भयावह दृश्य फिर इक बार,
जिसने कराया 36 साल पुराने कांड को याद,
कभी झुलसा था भोपाल सन चौरासी की जिस त्रासदी में,
झुलस गया आज आंध्र भी उस मंजर ए तबाही में,
क्या बच्चे क्या युवा सब आ गए थे जिसकी चपेट में,
उबर न पाया आज तक भोपाल उस त्रासदी के दंश से,
कि फिर वही मंजर आंखो के सामने सैलाब सा तैर रहा,
जब विशाखापत्तनम भी इक गैस से पूरा झुलस रहा,
बच ना पाए जानवर भी इससे हुई तबाही से,
शायद चूक हो गई हमसे उस त्रासदी से सबक लेने में,
गर सीख ली होती हमने भोपाल से और करते सुरक्षा के कड़े इंतजाम,
तो शायद फिर कोई भोपाल ना बन पाता दूसरी बार,
साल यह दशक का रंग अजीब ओ गरीब लाया है,
हर माह गुजर रहा त्रासदी में हर दिन तबाही लाया है,
पूरी जिंदगी की जो गलती शायद उसका हिसाब अब खुदा ने लगाया है,
तभी तो हो रहे पलटवार हम पर जिसका दंश कभी हमने प्रकृति को दिया था,
तबाही झेली जो प्रकृति ने ना चाहकर भी हम झेल रहे,
खुद को आजाद करके हमारे विनाशी विकास के ख़्वाब इसने कैद किए।