त्याग
घर बनाने हेतु हमें
घर छोड़ निकलना पड़ता
बेहतर जिंदगी पाने हेतु हमें
ठोकरें बार बार खाना पड़ता
ऐसे ही मंजिल
न मिलती मुसाफ़िर को
इसके लिए जिद्दी
और पागल बनना पड़ता
मुझे देख मेरी उड़ान का
अनुमान मत लगा
हम वो पंछी है
जिसे उड़ान भरने हेतु
गिर गिर कर फिर से
उठकर संभलना पड़ता
ऐसे ही नहीं पंछी अंबर में
उड़ानें भरने लगती
कई हारे मिलने पर
लगता हम टूट से गए
पर ये मत भुलना चाहिए
हार के संगम से ही जीत मिलती…
किसी महान कार्य हेतु
हमें त्याग देना जरूरी होता
ऐसे ही नहीं राम जैसे
साधारण राजा महान हो जाता
भगवान को जब
त्याग देना पड़ सकता
तो खैर हम मानव
तो हम मानव ही है…
कवि:- अमरेश कुमार वर्मा
पता :- बेगूसराय, बिहार