तो हमें भुलाओगे कैसे
जो रिश्ते हैं न बहुत नाज़ुक होते हैं
इनके जज्बातों से मत खेलना कभी
गहरे ज़ख़्म अगर नासूर बन गए
तो हमें भी बताओ मरहम लगाओगै कैसे
सांझ ढले चली आओ दरिया किनारे
कुछ बात है जो कहनी है आज़ तुमसे
सांसों का पता नहीं कब थम जाएंगी
हमारे किस्से फिर ज़माने को सुनाओगे कैसे
आज़ हमने भी यह ख़बर सुनी है
बे इंतेहा मोहब्बत करने लगी हो हमसे
अगर यह अफवाह नहीं तो बताओ
दिल में लगी आग को फिर बुझाओगे कैसे
हमारे बिन जीने की आदत डाल लो
और हां मंजिल का पता भी बदल डालो
धड़कनों का पता नहीं कब नाराज हो जाएं
याद हमारी आएगी तो हमें भुलाओगे कैसे