तो मुझे अच्छा लगे
कोई चिड़िया चहचहाये तो मुझे अच्छा लगे
कोई भँवरा गीत गाये तो मुझे अच्छा लगे
घास का मैदान सुन्दर लग रहा बेहद मगर
फूल कोई मुस्कुराये तो मुझे अच्छा लगे
अधखिली कलियों की मीठी ख़ुशबुओं की चाह में
कोई तितली आये-जाये तो मुझे अच्छा लगे
सिर्फ़ फूलों का बग़ीचा, क्या बग़ीचा है कोई
कोई बच्चा खिलखिलाये तो मुझे अच्छा लगे
खु़शनुमा हो शाम कोई और इक प्रेमी युगल
हँस के आइसक्रीम खाये तो मुझे अच्छा लगे
– शिवकुमार ‘बिलगरामी’