तो तुम कैसे रण जीतोगे, यदि स्वीकार करोगे हार?
तो तुम कैसे रण जीतोगे, यदि स्वीकार करोगे हार?
तो तुम कैसे सृजन करोगे, यदि पड़ जाओगे बीमार?
तो तुम कैसे मीत बनोगे, नहीं लुटाओगे यदि प्यार?
तो तुम कैसे यश पाओगे, यदि न सहोगे कष्ट अपार?
— महेशचन्द्र त्रिपाठी