तो क्या करता
उनसे प्यार ना करता,
तो क्या करता,
उनका हाथ ना पकड़ता,
तो क्या करता ???
वो सब भी तो मेरे ,
आस पास पलते थे,
उन्हें नजरअंदाज जो करता,
तो क्या करता ???
उनको सिर्फ मुझमे ही,
एक भरोसा था,
उनका अशफ़ाक़ ना बनता,
तो क्या करता ???
सूरज, चांद, ख्वाब,अरमान,
तो मुझमें भी बहुत थे
जो इनमे ही उलझ जाता,
तो क्या करता ???
पूरे कुनबे को तब,
एक मुझसे आसरा था,
उनकी उम्मीद ना बनता,
तो क्या करता ???
सिला क्या मिला ना मिला,
ये बात अलहदा है,
उस वक्त भटक जाता,
तो क्या करता ???
उनके लिए मेरा जीना,
मेरा मरना भी है ‘वारिद’,
वो खून हैं मेरे ये ना करता,
तो क्या करता???
©विवेक’वारिद’ *