✍️तो ऐसा नहीं होता✍️
✍️तो ऐसा नहीं होता….✍️
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तो ऐसा नहीं होता….
यदि इतिहास में दफ़न
वो सच फिर से
उजागर नहीं होता
और ना उखाड़ते वो गढ़े मुर्दे
जो आपके प्रगतिशील वर्तमान
को अप्रगत कर गये है ।
आपके आधुनिक भविष्य को
पिछड़ा कर गये है ।
इतिहास के सच और झूठ को
न्याय के कसौटी पे तोला होता…
तो ऐसा नहीं होता….
यदि कचरे के ढेर
में पडी वो पुरानी फाइले
ना खंगालते।
ना वो दबे ज़ख्म कुरेदे जाते।
ना सूखे घाव की
खुरंड निकाली जाती।
कुछ राज,राज ही बना रहता।
तो ऐसा नहीं होता….
आप समझ जाते
और ना मैं अंदर के
पन्नो के साथ चीर चीर
हुए फाइलो की बात करता
आप जानते है कई
ऐसे सरकारी दफ़्तर होंगे
जहाँ न्याय के प्रतिक्षा में
फाइलों का अंबार लगा होगा।
कुछ फाइले सरकारी अनुदान
के इंतज़ार में थक गयी होगी।
कुछ फाइले कुँवे,हैंडपंप योजना
के इंतज़ार में पस्त हो गयी होगी।
कुछ फाइले घरकुल योजना
के इंतज़ार में ध्वस्त हो गयी होगी।
कुछ फाइले ग्राम सड़क योजना
के इंतज़ार में ख़स्ता हो गयी होगी।
कुछ सच्चाई बयां करती
फाइले गुमशुदा हो गयी होगी।
शायद इन फाइलों को
भी संज्ञान में लिया होता…
तो ऐसा नहीं होता….
हमने इन सभी फाइलों को
खोलना ना गँवारा समझा था
और हमने खोल डाली ऐसी फ़ाइल
जिसका प्रचार और प्रसार में
सारे सरकारी मुलाजिम
और राजसत्ता के पहरेदार लगे हुए थे।
उनके विचारों की दूरदर्शन वाहिनीया
प्रसारण करने उन कलाकारो
के साथ लगी हुई थी।
खूब उछाले गये दर्द,पीड़ा,तकलीफें
जो किसीका व्यवसाय बनी थी।
मगरमच्छ के आँसू गिराकर जेबें भरी गयी
उनकी ये खुशियाँ किसीका
खून से सना हुवा दर्दनुमा भूतकाल थी।
अब यही भूतकाल,वर्तमान में
नये मुश्किलों को पैदा कर गया है।
आज अभी इस वक़्त
देश का भविष्य झुलस रहा नहीं होता…
तो ऐसा नहीं होता….
अगर फाइलों का नासूर दर्द फाइलों में पडा होता…
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✍️”अशांत”शेखर✍️
11/06/2022