तोहफा
*मुक्तक सृजन
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आये पीया मोर पाहुन बनके
तोहफे लाइस नुमाइश जमके
भर अकवार पकड़ मोहे बोले
कान कुण्डल गोरी बहुतही चमके।
सोच रही अब मैं का दूं उन्हें
कैसे कर अब प्रीत करूँ उन्हें
जीवन धन दैदीय तोहफे में
मेरा क्या जो आज मैं दूँ उन्हें।
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पं.संजीव शुक्ल “सचिन”
?? मुसहरवा (पश्चिमी चम्पारण) बिहार