तोड़ लिये रसुकात
कभी तुम्हारी याद जब,…. ..कर जाए बेजार !
उगें जहन की साख पर, शीघ्र और अशआर !!
उसनेे अपने आप ही,तोड़ लिये रसुकात !
क्या थे उसके सामने , पता नही हालात !!
रमेश शर्मा.
कभी तुम्हारी याद जब,…. ..कर जाए बेजार !
उगें जहन की साख पर, शीघ्र और अशआर !!
उसनेे अपने आप ही,तोड़ लिये रसुकात !
क्या थे उसके सामने , पता नही हालात !!
रमेश शर्मा.