*तोड़फोड़ (कहानी)*
तोड़फोड़ (कहानी)
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नगरपालिका वाले नालियों के ऊपर ढके गए पत्थर आकर तोड़ रहे थे । पूरे बाजार में तोड़फोड़ का यही दृश्य था । एक पत्रकार ने अधिकारियों से पूछा “अब तोड़ने के बाद आप क्या करेंगे ?”
वह बोला “हम क्या करेंगे ? हमें कुछ नहीं करना है । अब यह दुकानदार जानें कि वह क्या करेंगे । “फिर कुछ सेकंड के बाद उसके दिमाग में कुछ आया और कहने लगा ” दुकानदार अब इस पर फोल्डिंग लोहे का जाल बनवा लें।”
पत्रकार ने प्रश्न किया “नाला आपका है। आपकी संपत्ति है । उस पर क्या करना चाहिए ,यह निर्णय भी आपका होना चाहिए और खर्च भी आपका ही होना चाहिए ?”
अधिकारी ने कहा “अगर कोई लोहे का जाल न बनवाना चाहे तो न बनवाए । उसकी मर्जी । हम उसे बाध्य थोड़े ही कर रहे हैं।”
पत्रकार ने फिर प्रश्न किया “अगर किसी ने लोहे का जाल नहीं बनवाया और नाली खुली रही तथा उसमें कूड़ा कचरा गिरता रहा अथवा कोई व्यक्ति दिन में ही नाली में गिर गया ,तब उसका दोष किस पर आएगा ?”
अधिकारी झल्ला उठा ” इसीलिए तो हम कह रहे हैं कि लोहे का जाल बनवा लो।”
पत्रकार ने फिर से प्रश्न किया” लोहे का जाल तो केवल दिन में ही पड़ेगा। जब व्यापारी दुकान बंद करके चला जाएगा, तब नालियाँ खुली रहेंगी। हादसा उसके बाद भी कभी भी हो सकता है ।”
अधिकारी ने क्रुद्ध होकर पूछा “तो आप क्या चाहते हैं ? ”
पत्रकार ने शांत भाव से कहा “नालियों के स्थान को सड़क में शामिल कर लिया जाए । दोनों ओर से दो-दो फीट जगह सड़क की बढ़ जाएगी । यातायात सुगम हो जाएगा । समस्या का स्थाई हल निकलेगा।”
अधिकारी ने उपेक्षा के भाव से पत्रकार को देखा और कहा “यह मेरे हाथ में नहीं है। मैं केवल तोड़ सकता हूँ।”
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा, रामपुर उत्तर प्रदेश
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