तेवर
मेरे एहसास को पढ़ो
लफ़्ज़ों को नहीं
कितनी लंबी खामोशी है
ख्यालों में तुम हो
फिर भी
हालातों में तन्हाई है
बिखर के बैठा हूँ
समुद्र के किनारे
सुना कुछ भी नहीं
कहा कुछ भी नहीं
लहजे को सँभालने गए
तो अल्फ़ाज़ रुसवा हो गए
एक उम्मीद पास बैठी थी
न जाने कब , कहाँ
वो भी गुम गई
टूटा था मेरा
क़ाफिया, सराफ और मकता
सँवरने का तकाजा था, मगर
वफ़ा की राहों में
मासूमियत खो सी गयी
जिद्दी तुम थी
बेखबर मैं
मेरा तेवर तो यही था
रहता हूँ चाहत के जज्बे में
फड़कने के गुलशन में नहीं
*****
पारमिता षड़ंगी