Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
6 Jan 2023 · 4 min read

तेवरी युवा आक्रोश की तीसरी आँख

तेवरीः युवा आक्रोश की तीसरी आँख

+डॉ . रवीन्द्र ‘भ्रमर’
———————————————————————–
‘तेवरी’ के प्रति मेरा ध्यान निरन्तर आकर्षित होता रहा है और आज की हिन्दी कविता के सन्दर्भ में, मैं इसे एक सार्थक एवं साहसी कदम कहना चाहता हूँ। एक काव्य-विधा के रूप में ‘तेवरी’ का ताना-बाना अलीगढ़ में तैयार हो रहा है, लेकिन इसी काव्य-सर्जना के पैटर्न अन्य स्थानों पर भी बुने गये हैं या बुने जाने लगे हैं। इसे मैं ‘तेवरी’ में निहित कथ्य की चिन्गारी और शिल्प की आँच के प्रयास रूप में देखता हूँ।
मेरे शहर में युवा आक्रोश के कवि रमेशराज, अरुण लहरी, योगेन्द्र शर्मा और सुरेश त्रस्त ने ‘जनजागरण’ की विचार-प्रधान ‘तेवरी-पक्ष’ का सम्पादन प्रारम्भ किया। इसके आँकड़ों में प्रकाशित सामग्री को मैं देखता रहा हूँ। श्री रमेशराज द्वारा सम्पादित ‘तेवरी’ कवियों के कुछ समवेत संकलन भी मुझे देखने को मिले। ‘तेवरी’ के विस्फोटक कथ्य और आक्रोशपूर्ण मुद्रा का जो सटीक परिचय कराते हैं, इन संकलनों के नाम हैं- 1. ‘अभी जुबां कटी नहीं’, 2. ‘कबीर जि़ंदा है’, 3. ‘इतिहास घायल है’। इन संकलनों में लगभग ढाई दर्जन कवियों की तेज-तर्रार और धारदार रचनाएँ संकलित हैं।
तेवरी-कवि श्री दर्शन बेज़ार की रचनाओं का एक स्वतन्त्र-सम्पूर्ण संकलन प्रकाशित हुआ है-‘एक प्रहारः लगातार’। काव्य-संग्रह का यह नाम भी तेवरी कवियों की युयुत्स मनःस्थिति और तेवरी विधा के बोध-पक्ष को उजागर करता है। श्री बेज़ार से कई कारणों से मेरा कुछ गहरा परिचय है। उनके इस काव्य-संग्रह को मैंने बहुत ध्यान से और किंचित् आत्मीयता के साथ पढ़ा। ‘तेवरी’ के प्रति मेरी अनुशंसा और आस्था का प्रसंग यहीं से शुरू होता है।
कुछ समय पूर्व, अलीगढ़ के बुद्धिजीवीवर्ग के बीच आयोजित श्री बेज़ार की काव्यकृति ‘एक प्रहारः लगातार’ के विमोचन-समारोह की अध्यक्षता का भार मुझे सौंपा गया। इसके लिये ‘सार्थक-सृजन प्रकाशन’ के नियामक और ‘तेवरी’ के सूत्रधार श्री रमेशराज का मैं विशेष आभारी हूँ। उक्त अवसर पर मैंने ‘तेवरी’ को ‘युवावर्ग की तीसरी आँख’ की संज्ञा दी थी।
पुराण-पुरुष शिव की तीसरी आँख जब खुलती है तो किसी ज्वालामुखी की भांति तप्त लावा उगलती है और पाप का प्रत्यूह तथा कामाचार का अवरोध जलकर राख हो जाता है। ध्यान-मग्न शिव की समाधि बड़ी मुश्किल से टूटती है लेकिन जब कभी ऐसा होता है तो कोहराम मच जाता है-कृत्रिम वसन्त में आग लग जाती है। तेवरी के शब्द-संधान को देखकर ऐसा प्रतीत होने लगा है कि वर्तमान सामाजिक विसंगतियों और सामाजिक विद्रूपताओं में आग लगाने के लिये युवा-आक्रोश की तीसरी आँख खुल गई है।
विश्व-वाड्.मय का इतिहास साक्षी है कि कविता से फूल और त्रिशूल दोनों का काम लिया गया है। सामाजिक क्रान्ति के सन्दर्भ में कवि की कलम हरसिंगार की टहनी में तलवार उगा लेती है। आज के सामाजिक जीवन में जो अन्याय, उत्पीड़न और शोषण की विभीषिका है, उसी के समानान्तर युवा कवियों की कलम अन्याय की शृंखला को काटने के लिए अत्याचार और शोषण के पूँजीवादी प्रपंच को जलाने के लिये तेवरी के माध्यम से बारूदी भूमिका तलाश कर रही है।
अन्याय की शृंखला को काटने के लिए अत्याचार और शोषण के पूँजीवादी प्रपंच को जलाने के लिये‘तेवरी’ के तेवर इसी पृष्ठभूमि में ध्यातव्य हैं-
1. अब हंगामा मचा लेखनी,
कोई करतब दिखा लेखनी।
मैं सूरज हूँ इन्कलाब का,
मेरा इतना पता लेखनी।
[रमेशराजःअभी जुबां कटी नहीं]
अब कलम तलवार होने दीजिए,
दर्द को अंगार होने दीजिये।
2.घायल है इतिहास समय के वारों से,
चलो रचें साहित्य आज अंगारों से।
[दर्शन बेज़ार, एक प्रहारः लगातार]

‘तेवरी’ विधा रोमानी ग़ज़ल का युयुत्सावादी हिन्दी रूपान्तर मात्र नहीं है। समकालीन कविता में ग़ज़ल का प्रचार खूब हुआ है और तेवरी के कवि भी ग़ज़ल के पैटर्न के प्रति भले ही आकर्षित दिखाई पड़ते हैं किन्तु इनकी रचनाओं में हिन्दी-छन्दों का प्रयोग विशेष दृष्टव्य है। आल्हा के लोकछन्द में बुनी गई एक सफल रचना इस प्रकार है-
हाथ जोड़कर महाजनों के पास खड़ा है होरीराम।
ऋण की अपने मन में लेकर आस खड़ा है होरीराम।।
[सुरेश त्रस्त, कबीर जि़न्दा है]
दोहा छन्द में तेवरी का एक प्रयोग देखिये-
रोजी-रोटी दे हमें या तो यह सरकार।
वर्ना हम हो जाएंगे गुस्सैले खूंख्वार।।
[रमेशराज, कबीर जिन्दा है]
‘तेवरी’ की रचनाओं में पुराने छन्दों के अभिनव प्रयोग के साथ जनभाषा की मुखरता और संप्रेषण की सहजता एक विशिष्ट आयाम को उभारती है। अब कविता में जन-भाषा की शब्दावली और मुहावरों का प्रयोग बहुत जरूरी है।

कविता यदि क्रान्ति का औजार और सामाजिक परिवर्तन का माध्यम है तो उसमें सीधा और सटीक संप्रेषण होना चाहिए। सातवें दशक में अलीगढ़ से अखिल भारतीय स्तर पर ‘सहज कविता’ का अभियान चलाते हुए मैंने अनुभूति का सार्थकता और अभिव्यक्ति की सहजता पर विशेष बल दिया था। मुझे खुशी है कि नवें दशक में ‘तेवरी’ ने इस ऐतिहासिक दायित्व को ग्रहण करने की सूझबूझ दिखाई है। समकालीन हिन्दी कविता में इसके भविष्य के प्रति मैं आशान्वित हूँ।

Language: Hindi
167 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
#दोहा-
#दोहा-
*प्रणय प्रभात*
हिन्दू मुस्लिम करता फिर रहा,अब तू क्यों गलियारे में।
हिन्दू मुस्लिम करता फिर रहा,अब तू क्यों गलियारे में।
शायर देव मेहरानियां
बदल देते हैं ये माहौल, पाकर चंद नोटों को,
बदल देते हैं ये माहौल, पाकर चंद नोटों को,
Jatashankar Prajapati
# होड़
# होड़
Dheerja Sharma
देख के तुझे कितना सकून मुझे मिलता है
देख के तुझे कितना सकून मुझे मिलता है
Swami Ganganiya
सच अति महत्वपूर्ण यह,
सच अति महत्वपूर्ण यह,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
While proving me wrong, keep one thing in mind.
While proving me wrong, keep one thing in mind.
सिद्धार्थ गोरखपुरी
हर बार बिखर कर खुद को
हर बार बिखर कर खुद को
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
2373.पूर्णिका
2373.पूर्णिका
Dr.Khedu Bharti
कहते हैं तुम्हें ही जीने का सलीका नहीं है,
कहते हैं तुम्हें ही जीने का सलीका नहीं है,
manjula chauhan
Ramal musaddas saalim
Ramal musaddas saalim
sushil yadav
ग्लोबल वार्मिंग :चिंता का विषय
ग्लोबल वार्मिंग :चिंता का विषय
कवि अनिल कुमार पँचोली
जब तक दुख मिलता रहे,तब तक जिंदा आप।
जब तक दुख मिलता रहे,तब तक जिंदा आप।
Manoj Mahato
होते यदि राजा - महा , होते अगर नवाब (कुंडलिया)
होते यदि राजा - महा , होते अगर नवाब (कुंडलिया)
Ravi Prakash
बेवफ़ा इश्क़
बेवफ़ा इश्क़
Madhuyanka Raj
नहीं घुटता दम अब सिगरेटों के धुएं में,
नहीं घुटता दम अब सिगरेटों के धुएं में,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
(मुक्तक) जऱ-जमीं धन किसी को तुम्हारा मिले।
(मुक्तक) जऱ-जमीं धन किसी को तुम्हारा मिले।
सत्य कुमार प्रेमी
"फोटोग्राफी"
Dr. Kishan tandon kranti
एक बेहतर जिंदगी का ख्वाब लिए जी रहे हैं सब
एक बेहतर जिंदगी का ख्वाब लिए जी रहे हैं सब
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
शिक्षक दिवस
शिक्षक दिवस
नूरफातिमा खातून नूरी
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
संस्कार और अहंकार में बस इतना फर्क है कि एक झुक जाता है दूसर
Rj Anand Prajapati
"कुछ तो गुना गुना रही हो"
Lohit Tamta
चश्मे
चश्मे
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
जाओ कविता जाओ सूरज की सविता
जाओ कविता जाओ सूरज की सविता
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
जिंदगी का भरोसा कहां
जिंदगी का भरोसा कहां
Surinder blackpen
हालातों का असर
हालातों का असर
Shyam Sundar Subramanian
दर्शन की ललक
दर्शन की ललक
Neelam Sharma
जिन्दगी से शिकायत न रही
जिन्दगी से शिकायत न रही
Anamika Singh
जीवन समर्पित करदो.!
जीवन समर्पित करदो.!
Prabhudayal Raniwal
शहर बसते गए,,,
शहर बसते गए,,,
पूर्वार्थ
Loading...