तेवरी में कुशाग्र तीर +अमरनाथ ‘मोही’
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आज की कुरीतियों, अनैतिकताओं पर कुशाग्र तीरों से प्रहार करने के लिये ;कभी सीधे तौर पर तो कभी प्रतीकात्मक उलझे- घुमावदार पथों से होकर, काव्य की वह सृजन कला है-‘तेवरी’, जिसे पढ़ते-सुनते और गुनते हुये, हमारी संवेदनाओं के तार झनझना उठते हैं और ‘तेवरी’ में व्यक्त ‘सच’ को जन-साधारण द्वारा स्वयं ही स्वीकृति मिल जाती है।
इस विधा का बहुत ही प्यारा गुण है कि पढ़ते और सुनते हुये हमारे तेवर में सचमुच एक स्वाभाविक परिवर्तन आ जाता है? आज के युग में ‘तेवरी’ की विशिष्ट आवश्यकता-सी