‘तेवरी’ में शोषित की पक्षधरता + रामानुज वर्मा
‘तेवरी’ समाज में उन घुन के समान लोगों की कारगुजारियों को हमारे समक्ष ला रही है, जो देश के कमजोर, शोषित, बेरोजगार, अशिक्षित, भोलेभाले, असहाय एवं खून-पसीना एक करने वाले गरीब लोगों को चुन-चुनकर खा रहे हैं।
देश में गरीब और गरीब तथा अमीर और अमीर होते जा रहे हैं। इस रहस्य को अब तेवरी ही खोल रही है। इसके लिये निडर एवं साहसी रचनाकारों एवं सम्पादकों को शत्-शत् बार बधाई।
आजकल के भ्रष्ट, रिश्वतखोर, आलसी, नकलची एवं फिजूलखर्ची सफेदपोशों पर निश्चय ही तेवरी ने एक तलवार का काम किया है। यदि इस पर भी उनका उपचार एवं देश का सुधार नहीं होता है तो इस देश का ईश्वर ही मालिक होगा। वैसे आजकल के प्रकाशित साहित्य में हमने वर्तमान शासकों के घिनौने कारनामों को उजागर करते हुए नहीं पढ़ा। लेकिन ‘तेवरी’ के रचनाकारों ने निष्पक्ष भेदभावरहित, बेहिचक, निडर होकर, उन लोगों के कुकृत्यों को उजागर किया, जो देश के कर्णधार एवं मसीहा कहे जाते हैं।
ऐसे नाजुक समय में जब देश में खण्डता के बादल चारों ओर मँडरा रहे हैं, ऐसे समय में ‘तेवरी’ एक ढाल का काम रही है। कहने का तात्पर्य यह है कि तेवरी-रचनाएँ देश के नवयुवकों में ऐसे भाव भर रही हैं, जिससे वे लोग देश की खण्डता को रोकेंगे।
मेरे विचार से ‘तेवरी’ का भाव निष्पक्ष है, जो हमारे लिए व समाज के लिए एक दर्पण के तुल्य है, जिसमें समाज के शोषित, सीधे-सादे लोग यह देख सकते हैं कि हमारी खून-पसीने की कमाई का क्या होता है? हम उन लोगों के विचारों से बिल्कुल सन्तुष्ट नहीं हैं, जो ‘तेवरी’ को पक्षपाती एवं ग़ज़ल की नकल का एक रूप कहते हैं, क्योंकि तेवरी के तेवरों ने जिस प्रकार आजकल के यथार्थ का चित्रण स्पष्टरूप से किया है, वैसा आधुनिक ग़ज़लों में नहीं मिलता है।
‘तेवरी’ के द्वारा चन्द लोगों के जुल्म सबके सामने गाए गये हैं, जो हमारे शहीद अशफाक उल्लाह, रामप्रसाद बिस्मिल, रोशन लाल एवं चन्द्रशेखर आदि क्रान्तिकारियों की विचारधारा को आगे बढ़ाते हैं।