#तेवरी / #देसी_ग़ज़ल
#तेवरी / #देसी_ग़ज़ल
■ झूठ का सच ने पग पकड़ा है।।
【प्रणय प्रभात】
– ये पिछड़ा है वो अगड़ा है।
ये सारा झूठा झगड़ा है।।
– फूल हमेशा मुरझाए हैं।
कांटों का कब क्या बिगड़ा है?
– बिल्ली जैसे लोग जगत के।
सब के ख़्वाबों में छिछड़ा है
– दिल का कहना मन ना माने।
दोनों में शायद झगड़ा है।।
– सब करते हैं कानाफूसी।
पता नहीं ये क्या लफ़ड़ा है।।
– शर्म-हया बेमानी बातें।
अब सबका मोटा चमड़ा है।।
– कैसे रिश्ते, कैसे नाते।
सबको मतलब ने जकड़ा है।।
– कहां-कहां तक ढंके आबरू।
दुविधा में अब ख़ुद कपड़ा है।।
– सत्यमेव जयते कह कर के।
झूठ का सच ने पग पकड़ा है।।
– मौत साथ ले गई हेकड़ी।
ढीठ जिस्म फिर भी अकड़ा है।।
●संपादक/न्यूज़&व्यूज़●
श्योपुर (मध्यप्रदेश)