#तेवरी (देसी ग़ज़ल)
#तेवरी (देसी ग़ज़ल)
■ मेंढकी को जुकाम, हैरत है।।
【प्रणय प्रभात】
सुर्खियों में है नाम, हैरत है।
चोट्टों को सलाम, हैरत है।।
वक्त के सब ग़ुलाम, सुनते थे।
वक्त उसका ग़ुलाम, हैरत है।।
ताल सूखे, गुज़र गए बरसों।
मेंढकी को जुकाम, हैरत है।।
बंद है बाग़ में, हवा फिर भी।
देख आंधी के आम, हैरत है।।
ख़ून पीना हलाल, अरसे से।
और दारू हराम, हैरत है।।
जो गिराता रहा, सदा सबको।
हो गया ख़ुद धड़ाम, हैरत है।।
कल को अनमोल था, यही जीवन।
आज कोड़ी के दाम, हैरत है।।
घास की बाट, जोहते घोड़े।
खच्चरों को बदाम, हैरत है।।
घर में आराम कर रहे सिरचन।
छोड़ के काम-धाम, हैरत है।।
ज़िंदगी पल की, फ़िक्र में कल की।
इस क़दर तामझाम, हैरत है।।
हाथ-पैरों में, दम नहीं बाक़ी।
सोच में इंतक़ाम, हैरत है।।
छूट भौरों को, भिनभिनाने की?
फूल की रोकथाम, हैरत है।।
दिल से ले के, दिमाग़ तक रावण।
जीभ पे राम-राम, हैरत है।।
देख के निर्वसन, ज़माने को।
मूक कैसे हमाम, हैरत है।।
रोशनी लिख रही है, मुद्दत से।
तीरग़ी पे क़लाम, हैरत है।।
●सम्पादक●
-न्यूज़ & व्यूज़-