तेवरी आन्दोलन की साहित्यिक यात्रा *अनिल अनल
‘वृहद हिंदी शब्दकोश’ [ सम्पादक- कालिका प्रसाद ] के षष्टम संस्करण जनवरी-1989 के पृष्ठ490 और 493 पर तेवर [ पु. ] शब्द का अर्थ- ‘क्रोधसूचक भ्रूभंग’, ‘क्रोध-भरी दृष्टि’, ‘क्रोध प्रकट करने वाली तिरछी नज़र’ बताने के साथ-साथ ‘तेवर बदलने’ को- ‘क्रुद्ध होना’ बताया गया है | ‘तेवरी’ [ स्त्रीलिङ्ग ] शब्द ‘त्यौरी’ से बना है | त्यौरी या ‘तेवरी’ का अर्थ है – ‘माथे पर बल पड़ना’ , ‘क्रोध से भ्रकुटि का ऊपर की और खिंच जाना’ |
वस्तुतः तेवरी सत्योंमुखी चिन्तन की एक ऐसी विधा है जिसमें शोषण , अनीति, अत्याचार आदि के प्रति स्थायीभाव ‘आक्रोश’ से ‘विरोधरस’ परिपक्व होता है |
8वें दशक के प्रारम्भ में व्यवस्था-विरोध के तेवर को ‘तेवरी’ के रूप में स्थापित करने का श्रेय डॉ. देवराज और ऋषभदेव शर्मा देवराज को जाता है |
तेवरी विधा को स्थापित करने के लिए एक आन्दोलन का रूप प्रदान करने में रमेशराज ने प्रमुख भूमिका निभाई है| इनके सम्पादन में तेवरी विधा की त्रैमासिक पत्रिका ‘तेवरीपक्ष’ का प्रकाशन सन 1982 से निरंतर अब भी जारी है | इसके अलावा ‘अभी जुबां कटी नहीं’, ‘कबीर ज़िन्दा है’, ‘इतिहास घायल है’ नामक तेवरी संग्रहों में देश के अनेक ख्यातिप्राप्त रचनाकारों की तेवरियाँ संग्रहीत हैं , जिनका सम्पादन रमेशराज ने किया है |
एक तरफ तेवरीकार दर्शन बेज़ार के तीन तेवरीसंग्रह ‘एक प्रहार: लगातार’, ‘देश खंडित हो न जाये’, ‘खतरे की भी आहट सुन’ प्रकाशित हुए हैं।
तेवरी आन्दोलन के प्रमुख हस्ताक्षर रमेशराज के तेवरी संग्रह ‘दे लंका में आग’, ‘जय कन्हैया लाल की’, ‘घड़ा पाप का भर रहा’, ‘मन के घाव नये न ये’, ‘धन का मद गदगद करे’, ‘ककड़ी के चोरों को फांसी’, ‘मेरा हाल सोडियम-सा है’, ‘रावण कुल के लोग’, ‘अंतर आह अनंत अति’, ‘पूछ न कबिरा जग का हाल’ ‘बाजों के पंख क़तर रसिया’, ‘रमेशराज के चर्चित तेवरी-संग्रह’ आदि ने अच्छीखासी ख्याति अर्जित की है |
तेवरी विधा में रस की समस्या के समाधान के लिए श्री रमेशराज ने एक नये रस ‘ विरोधरस ‘ की स्थापना की है| ‘विरोधरस’ नामक पुस्तक का साहित्यजगत ने पूरी गर्मजोशी से स्वागत किया है | रमेशराज का तेवरी शतक-‘ऊधौ कहियो जाय’ भी मौलिक कथन और छन्दों के नूतन प्रयोगों से युक्त होने के कारण अत्यंत चर्चित हुआ है |
तेवरी आन्दोलन आज पूरे हिंदी साहित्य में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा रहा है |