तेरे संग
तेरे संग
तेरे संग हो के लग रहा जैसे
तू कहीं नहीं,
कहती हैं तेरी आंखे मोहब्बत
तुझ में कहीं नहीं।
तुझे मतलब है सिर्फ अपने ही
मन के सूकून से,
मेरे अश्कों की वजह का एहसास
तुझ में कहीं नहीं।
ये माना शराफत की तेरी दाद
देता है जमाना।
प्यार करने का सलीका मगर
तुझ में कहीं नहीं।
इबादत से पत्थर की मूरत भी
रब हो जाती है,
फितरत उस पत्थर सी ही तुझ
में कहीं नहीं।
हद से गुजरते देखा है लोगों को
मोहब्बत की खातिर,
देखा तुझे तो जाना ये हुनर है
तुझ में कहीं नहीं।
मिसाल है इश्क़ की तू सारे
जमाने के लिए,
दिल तोड़ने का मलाल रहता
तुझ में कहीं नहीं।
फेहरन ओढ़ रखा है तूने बड़ी
ही मासूमियत का,
दिल मासूम सा मगर दिखता
तुझ में कहीं नहीं।
कफ़न ओढ़ाया है तूने मेरी
ख्वाइशों को,
ये मत सोच के वो कातिल
तुझ में कहीं नहीं।
कदम दर कदम मौत के करीब
ला दिया मुझे,
अपनी ज़िंदगी की उम्मीद दिखी
तुझ में कहीं नही।
मेरी अर्थी को कांधा लगाने
ना आना तू,
आज़ाद है तू कोई बंधन अब
तुझ में कहीं नहीं।
सीमा शर्मा