तेरे लिए
(महबूबा के खफा हो जाने पर महबूब क्या कहता है?अर्ज़ किया है।)
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सीने से लगके सुन लो ज़रा,
दिल धड़क रहा है तेरे लिए….!
ठोकरें खा कर इस जहाँ की,
जी रहा हूँ तेरे लिए….!!
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खता तो हम ये कर बैठे,
तुमसे दिल लगाने की….!
आज शमां को नहीं जरूरत,
दिलजले परवाने की….!!
तू हंसती रहे हमेशा….,
जोकर बना हूँ तेरे लिए…!!!
सीने से लगके सुन लो ज़रा,
दिल धड़क रहा है तेरे लिए….!
ठोकरें खा कर इस जहां की,
जी रहा हूँ तेरे लिए….!!
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दिल-ए-जदा है अब तो देखो,
चिलमन से तो बाहर आओ…!
इख़्तियार इस दिल पे तेरा,
गमगुस्सार तो बन जाओ…!!
तू जुस्तजू है मेरी सनम….,
भटक रहा हूँ तेरे लिए….!!!
सीने से लगके सुन लो ज़रा,
दिल धड़क रहा है तेरे लिए….!
ठोकरें खा कर इस जहाँ की,
जी रहा हूँ तेरे लिए….!!
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(महबूब का अज़ाब देख कर महबूबा का दिल पिघल जाता है। महबूबा क्या जवाब देती है। अर्ज़ कर रहा हूँ।)
अश्किया न समझो मुझे,
अज़ल से मोहब्बत है सनम..!
चश्म-ओ-चिराग हो तुम मेरे,
चश्म-ए-बद्दूर ज़माने की….!!
गोशा-ए-दिल चमन महके तुमसे,
अशफ़ाक़ हो “संजय” मेरे लिए..!!!
दिल चिर के देखलो ज़रा,
कितना प्यार भरा है तेरे लिए….!
परवाह नहीं इस ज़माने की,
जी रही हूं बस तेरे लिए….!!
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लेखक,
कवि एवं पत्रकार संजय गुप्ता।
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