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14 Mar 2024 · 1 min read

“तेरे लिए..” ग़ज़ल

ले लिए ख़ुद पे, ज़माने के, क़हर, तेरे लिए,
पी लिया अब तो आशिक़ी का ज़हर तेरे लिए।

ग़ुस्ल करते, तुझे देखा है, जब से बारिश मेँ,
दोनों आँखों मेँ भर लिए, हैं बहर तेरे लिए।

तिरी ही याद, तसव्वर मेँ अक्स, बस तेरा,
अब तो हरचंद, मिरी शामो-सहर तेरे लिए।

देख लेता हूँ, हसीनों को, है ये सच, लेकिन,
वो शरारत भरी, दिलकश सी, नज़र तेरे लिए।

इक ही बस फ़िक्र, है हर वक़्त, ज़हन मेँ मेरे,
कैसे लाऊँ मैं ख़ुशनुमा सी ख़बर, तेरे लिए।

अश्क़ पी-पी के ही, निखरा है रूप-रँग मेरा,
हम तो हर हाल मेँ, कर लेँगे बसर, तेरे लिए।

दुआ ही इक तिरी, बहुत है हौसले को मिरे,
जीत लाऊँगा मैं, हर एक, समर तेरे लिए।

चाँद-तारे भी, फ़लक से मैं, तोड़ कर लाता,
तय करूँ कितना भी तवील, सफ़र तेरे लिए।

इम्तेहां रोज़ यूँ, अच्छा नहीं, होता यारा,
छोड़ आऊँ, ज़रो-दौलत-ए-दहर, तेरे लिए।

डूबने का न, समन्दर मेँ, कोई ख़ौफ़ मुझे,
ढूंढ लाता मैं, सभी लालो-गुहर, तेरे लिए।

नहीं था इल्म, ख़ुदकुशी का, हमें किश्तों मेँ,
लिया है सीख, अब तो ये भी, हुनर तेरे लिए।

रफ़्ता-रफ़्ता हुआ बेहिस सा हूँ क्यूँकर “आशा”,
ला चुका ख़ुद पे, बेख़ुदी का असर, तेरे लिए..!

ग़ुस्ल करते # नहाते, taking a bath
बहर # समन्दर, sea
तसव्वर # ख़याल, imagination
शामो-सहर # रात-दिन, everytime
समर # युद्ध, warफ़लक # आसमान, sky
तवील # लम्बा, lengthy
ज़रो-दौलत-ए-दहर # साँसारिक सम्पत्तियाँ, रुपया-पैसा आदि, worldly belongings
लालो-गुहर # मोती-मानिक, rubies and pearls
बेहिस # उदासीन, indifferent

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Books from Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
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