तेरे मेरे रिश्ते को मैं क्या नाम दूं।
तेरे मेरे रिश्ते को मैं क्या नाम दूं।
तूझसे दिली चाहत को क्या पहचान दूं।।1।।
दिल मेरा ही जलेगा तुम्हारा नहीं।
इसीलिए तेरे हर रिश्ते से मैं गुमनाम हूं।।2।।
अब कहने सुनने से क्या फ़ायदा।
सोचता हूं ये जिंदगी तन्हा ही गुजार दूं।।3।।
तेरी बागबां जिन्दगी को बहार दूं।
तेरीआंखों को मैं कुछ नए से ख़्वाब दूं।।4।।
आ साथ चले सफर में हम दोनों।
तेरी सेहरा सी जिन्दगी को मैं आब दूं।।5।।
अकीदा करके तो देख तू मुझपे।
मोहब्बतों से तेरी रूह को मैं संवार दूं।।6।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ