तेरे मेरे दर्मियान
दूरियां बहुत हो गई है अपने दरमियान ,
क्यों ना मिटाया जाए ।
थोड़े तुम थोड़े हम क्यों ना चला जाए ।।
वक्त ने शायद अब तो कम कर दी होगी कुछ तकलीफे ।
कुछ तुम कहो कुछ मैं कहूं , क्यों ना बाकी को भी दूर किया जाएं ।।
बगिया में गुलाब के पौधे धीरे धीरे अब मुरझा रहे है ।
और बालकनी में रखी दो कुर्सियां भी कभी से खाली है ।।
क्यों ना बगिया को सिंचा जाए और बैठ बालकनी में कुर्सियों पर कोई ख्वाब नया देखा जाए ।
तुम कहो तो एक शुरुवात की जाएं ।
एक सफ़र फिर से तय किया जाए। ।