तेरे मेरे दरमियाँ
तेरे मेरे दरमियाँ एक रिश्ता है जाना पहचाना सा।
जिसमें प्रेम है, विश्वास है ,भरोसा है और न जाने क्या-क्या।
प्रेम से ओत-प्रोत मन है ,आत्मा है ,एहसास है।
मेरे दिल का तुम्हारे दिल में ही प्रवास है।
शायद इसी लिए फिरता हूँ मैं दीवाना सा।
तेरे मेरे दरमियाँ एक रिश्ता है जाना पहचाना सा।
तुम दूर हो फिर भी मेरे पास हो।
तुम मेरी बेताब निगाहों की तलाश हो।
मैं तुम्हारे ख्यालों में उलझा हूँ जमाना सा।
तेरे मेरे दरमियाँ एक रिश्ता है जाना पहचाना सा।
मैं मरीज-ए-मोहब्बत हूँ तुम्हारी मोहब्बत का।
फिर तुमपर जिम्मा है मेरी हिफाजत का।
मेरे इलाज के लिए रहना तुम दवाखाना सा।
तेरे मेरे दरमियाँ एक रिश्ता है जाना पहचाना सा।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी