तेरे मुस्कान के दम पर ,,,ग़ज़ल
ग़ज़ल
यहाँ हर आदमी लालच में सारा काम करता है ।
ज़माने में शराफ़त से कहाँ व्यापार चलता है ।
हरिक क़िरदार बैठा है यहां छुपकर मुखौटे में ,
न जाने आदमी चेहरे पे क्यूँ चेहरा बदलता है ।
किसी की शक़्ल पे जाना भला कैसी समझदारी,
यहाँ हर शक़्ल के भीतर नया चेहरा निकलता है ।
लुटाता है बिना समझे जो बेटा बाप की दौलत ,
बुढ़ापे में वही ठोकर पे ठोकर खा के चलता है ।
तेरे चेहरे पे ठहरी है मेरे ख़्वाबों की इक दुनिया ,
तेरी मुस्कान के दम पर वहाँ सूरज निकलता है ।
हवस अच्छी नही होती जहाँ में यार पैसों की ।
यही पैसा तुम्हारी जान का दुश्मन निकलता है ,
भलाई आमजनता की करेगा जो यहाँ ,रकमिश,
वो नेता है जो अपने देश को अपना समझता है ।
रकमिश सुल्तानपुरी