तेरे मन मन्दिर में दीप जलाऊं मै कैसे ?
तेरे मन मन्दिर में जगह बनाऊं मैं कैसे,
बिन बाती तेल के दीप जलाऊं मैं कैसे।
तड़फ तड़फ कर मर जाऊंगी मैं बिन तेरे,
पास नहीं तुम मेरे,अपना दर्द सुनाऊं मैं कैसे।
बढ़ती नहीं है आगे जिंदगी अब बिन तेरे,
बीते हुए लम्हों को अब भुलाऊ मैं कैसे।।
आती नहीं है नींद रात में अब बिन तेरे,
चांदनी रात में अपने को सुलाऊं मैं कैसे।।
आते नहीं जब तुम गमगीन दिल हो जाता है मेरा,
इन हालातो में दिल को दिलासा दिलाऊं मैं कैसे।।
चाहता है रस्तोगी,तेरे दर्द को बयां कर दूँ सबको,
स्याही अब सूख गई,कागज पर लिखाऊ मैं कैसे।।
आर के रस्तोगी गुरग्राम